अयोध्या विवादित ढांचा विध्वंस पर बहुप्रतीक्षित फैसला कल,क्या बारी हो पाएंगे ये दिग्गज या होगी सजा, पढ़ें पूरा प्रकरण

 

28 साल पुराने अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में फैसले की घड़ी करीब आ गयी है। 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या के विवादित ढांचे को  तोड़ने के कथित षड्यंत्र, भड़काऊ भाषण और पत्रकारों पर हमलों के 49 मुकदमे में आरोपियों पर सीबीआई की विशेष अदालत अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाएगी।

 इस फैसले के आने से पहले आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की कमेटी आन बाबरी मस्जिद तथा बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जीलानी ने 'हिन्दुस्तान' से बातचीत में कहा कि वह फैसला आने के बाद अपनी प्रतिक्रिया देंगे।

 एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस फैसले के सुनाए जाने से पहले उनके संगठन की कोई बैठक नहीं होगी। इन बीते 28 वर्षों में 49 अभियुक्तों में से 17 की मृत्यु हो चुकी है। लगभग पचास गवाह भी दुनिया से विदा हो चुके हैं। पूरी दुनिया की निगाह बुधवार 30 सितम्बर को लखनऊ की विशेष सीबीआई कोर्ट द्वारा सुनाए जाने वाले इस फैसले पर लगी हुई हैं।

आईये जानते हैं क्या है इस पूरे प्रकरण की पृष्ठभूमि:

केस नंबर 197
छह दिसंबर1992 को विवादित ढांचे को  पूरी तरह से ध्वस्त होने के बाद थाना राम जन्मभूमि, अयोध्या के प्रभारी पीएन शुक्ल ने शाम पांच बजकर पन्द्रह मिनट पर लाखों अज्ञात कार सेवकों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा कायम किया। इसमें बाबरी मस्जिद गिराने का षड्यंत्र, मारपीट और डकैती शामिल है। 

केस नंबर 198
6 दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचे के सम्पूर्ण विध्वंस के लगभग दस मिनट बाद एक अन्य पुलिस अधिकारी गंगा प्रसाद तिवारी ने आठ लोगों के खिलाफ राम कथा कुंज सभा मंच से मुस्लिम समुदाय के खिलाफ धार्मिक उन्माद भडकाने वाला भाषण देकर बाबरी मस्जिद गिरवाने का मुकदमा कायम कराया।

ये नामजद अभियुक्त हैं - अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा।  भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए ,153बी , 505, 147 और 149 के तहत यह मुकदमा रायबरेली में चला। बाद में लखनऊ सीबीआई कोर्ट में चल रहे मुकदमे में शामिल कर लिया गया। 

-विवादित ढांचे के विध्वंस के बाद अयोध्या में  विवादित स्थल पर बनासे गये  अस्थायी राम मंदिर सी मुकदमे के आधार पर पुलिस ने 8 दिसंबर 1992 को आडवाणी व अन्य नेताओं को गिरफ्तार किया था।  शांति व्यवस्था की दृष्टि से इन्हें ललितपुर में माताटीला बाँध के गेस्ट हॉउस में रखा गया। इस मुकदमे की जांच उत्तर प्रदेश पुलिस की सीआईडी क्राइम ब्रान्च ने की।  सीआईडी ने फरवरी 1993 में आठों अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी। मुकदमे के ट्रायल के लिए ललितपुर में विशेष अदालत स्थापित की गई।  बाद में आवागमन की सुविधा के लिए यह अदालत रायबरेली ट्रांसफर कर दी गई। 

-पत्रकारों पर हमले के मामले

इन  मामलों के अलावा पत्रकारों और फोटोग्राफरों ने मारपीट, कैमरा तोड़ने और छीनने आदि के 47 मुक़दमे अलग से कायम कराए।  ये मामले लखनऊ सीबीआई कोर्ट से  जुड़े रहे । 

सरकार ने बाद में सभी केस सीबीआई को जाँच के लिए दे दिए।  सीबीआई ने रायबरेली में चल रहे केस नंबर 198 की दोबारा जाँच की अनुमति अदालत से ली।  उत्तर प्रदेश सरकार ने 9 सितम्बर 1993 को नियमानुसार हाई कोर्ट के परामर्श से 48 मुकदमों के ट्रायल के लिए लखनऊ में स्पेशल कोर्ट के गठन की अधिसूचना जारी की।  लेकिन इस अधिसूचना में केस नंबर 198 शामिल नही था, जिसका ट्रायल रायबरेली की स्पेशल कोर्ट में चल रहा था। 

- सीबीआई के अनुरोध पर बाद में 8 अक्टूबर 1993 को राज्य सरकार ने एक संशोधित अधिसूचना जारी कर केस नंबर 198 को भी लखनऊ स्पेशल कोर्ट के क्षेत्राधिकार में जोड़ दिया। लेकिन राज्य सरकार ने इसके लिए नियमानुसार हाई कोर्ट से परामर्श नही किया। बाद में आडवाणी और अन्य अभियुक्तों ने राज्य सरकार की इस तकनीकी त्रुटि का लाभ हाई कोर्ट में लिया। 

ये हैं 32 अभियुक्तों के नाम

लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण  सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, डा- राम विलास वेदांती, चंपत राय, महंत धर्मदास, सतीश प्रधान, पवन कुमार पांडेय, लल्लू सिंह, प्रकाश वर्मा, विजय बहादुर सिंह, संतोश  दूबे, गांधी यादव, रामजी गुप्ता, ब्रज भूषण सिंह, कमलेश्वर त्रिपाठी, रामचंद्र, जय भगवान गोयल, ओम प्रकाश पांडेय, अमर नाथ गोयल, जयभान सिंह पवैया, महाराज स्वामी साक्षी, विनय कुमार राय, नवीन भाई शुक्ला, आरएन श्रीवास्तव, आचार्य धमेंद्र देव, सुधीर कुमार कक्कड़ व धर्मेंद्र सिंह गुर्जर। 

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