Dussehra In Ayodhya: रामनगरी में दशानन के दलन से असत्य पर सत्य की विजय की पूर्णाहुति

 अयोध्या: 
Dussehra In Ayodhya सितारों से सज्जित रामलीला की नौवीं प्रस्तुति का आकर्षण 40 फीट ऊंचे रावण के पुतले का दहन था। पुतले में आग लगते ही लक्ष्मणकिला का विशाल परिसर अन्याय-अनाचार के अंत के आलोक से आलोकित हो उठा।

अयोध्या यूं तो रामकथा की शुरुआत से ही श्रीराम विजित हो रहे होते हैं और रावण परास्त हो रहा होता है, पर रामकथा की पूर्णाहुति होते-होते रावण ही नहीं उसका समग्र अस्तित्व काल कवलित हो उठता है और श्रीराम युगों-युगों तक के लिए अमरत्व की प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। यह सच्चाई पुण्य सलिला सरयू के तट पर स्थित रसिक उपासना परंपरा की शीर्ष पीठ लक्ष्मणकिला के परिसर में चल रही नौ दिवसीय रामलीला के अंतिम दिन भी बखूबी प्रतिपादित हो रही होती है।

प्रस्तुति की शुरुआत से ही रावण के सिर पर मृत्यु मंडरा रही होती है। महाबली भ्राता कुंभकर्ण और कुटिलता-क्रूरता से इंद्र को भी मात देने वाले प्रिय पुत्र मेघनाद को खोकर वह अत्यंत चिंतित है। उसके रनिवास सहित पूरी लंका में मातम पसरा है। रावण की भूमिका में रजत पट के जाने-माने अभिनेता शाहबाज खान रह-रह कर आह भरने के साथ अपने अहंकार को सहेज कर रावण की युगों पुरानी स्मृति जीवंत करते हैं। संकट की इस घड़ी में उसे अपने एक अन्य पुत्र अहिरावण की याद आती है। वह मंत्र शक्ति से अहिरावण का आह्वान करता है और अगले पल रावण के सम्मुख अहिरावण प्रकट होता है।

 

अहिरावण की भूमिका में बॉलीवुड के दिग्गज रजा मुराद होते हैं। हालांकि अपनी पहचान से मुक्त रजा मुराद अहिरावण की भूमिका को जीवंत कर रहे होते हैं। अहिरावण की छवि के अनुरूप कुटिल, कुचाली और दुर्दमनीय छवि के साथ। अहिरावण रावण को प्रणाम करता है और रावण उसे आयुष्मान भव का आशीर्वाद देते हुए संकट पर पूरा विवरण सुनाता है। पिता की तरह अहंकारी अहिरावण रावण को आश्वस्त करता है और श्रीराम एवं लक्ष्मण की ओर संकेत करता हुआ कहता है, मैं उन दोनों तपस्वियों को हर लाऊंगा और देवी की भेंट चढ़ा दूंगा।

अहिरावण अपने छल में कुछ हद तक कामयाब भी होता है। वह विभीषण का वेश धारण कर श्रीराम के शिविर में पहुंचता है। द्वार पर हनुमान जी को धोखा देता हुआ, वह श्रीराम-लक्ष्मण सहित रामादल के अन्य योद्धाओं को मूर्छित कर श्रीराम-लक्ष्मण का हरण कर पाताल लोक पहुंचता है और दोनों भाइयों की बलि देने की तैयारी शुरू करता है। उधर विभीषण जब पूजा के बाद रामादल के शिविर में लौटते हैं, तब हनुमान जी बेचैन मिलते हैं और श्रीराम-लक्ष्मण का कुछ पता नहीं चलता।

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